Monday, 13 February 2017

बसंत

आम बौरा  गया
फूले सरसों के फूल
प्रकृति को पीली चूनर ओढा
पलाश का आकाश बना
कल्पना की डोली सजा
न जाने कहाँ कहाँ ले जाती
नव पल्लव नव रंग के फूल
स्वागत को तैयार
बान्दना बना
कोयल की तान सुना
मन को आत्मविभोर कर देती
बरबस मन बावरा हो जाता
सचमुच  बसंत  आ गया ।

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