Saturday, 21 January 2017

आईना

किस तरह खुद को कोई  मनाता है।
आहट जरा सी हो तो जाग जाता है ।
हरेक लम्हा इतना पीछे चला जाता है
कि लौटने कई साल बीत जाता है ।
हवा भी खूब शरारत करे  करीब  आकर
सपन है या फिर  हकीकत समझ न आता है ।
गौर से देखती हूँ खुद को जब
दिल में सोया हुआ अरमान जाग जाता है ।
खूबसूरत लगे मेरा साया
अक्श में आईना साफ नजर आता है ।

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