Tuesday, 1 November 2016

छठ

उगत सुरूज लाल भइले चलु अरग दियाय ।
छठिया बरत पूर भइले चलु अरग दियाय ।।
होत भिनसार गंगा पइसी कइनी गंगा असनान।
लौकी आ भात पकइनी खरना कइनी बिहान॥
दिनभर ठेकुआ पकइनी सांझे अरग दियाय।
हाथ गिर जोड़ीले दीनानाथ हम तोहरे दुआर॥
भूल चुक क्षमा करू दीनानाथ मांगी अचरा पसार।
मनसा पुरहु मोर दीनानाथ महिमा अपरम्पार ॥
नइहर भाई रे भतीजवा घरे वंश हमार
राउर किरिपा हे दीनानाथ मांगी अचरा पसारने
उगत ...........


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