meri baaten
Saturday, 1 January 2022
गिरि से गिरकर पाषाण खण्ड,फिर कब पर्वत हो पाते हैं।16+16=32 मात्रा
Monday, 20 January 2020
भोर मनसा की
Wednesday, 1 January 2020
बंजारा
Monday, 30 December 2019
नयासाल
Friday, 27 December 2019
तुम और हम
Sunday, 11 November 2018
सातहीं घोड़ा
सातहीं घोड़ा पर सवार सुरूजदेव अइले अटरिया।
हाथ जोड़ी पनिया में ठारी तिवइया सुमिरेली देव के अपार, सुरूजदेव अइले अटरिया।
लाली किरणिया तिवइया के चुनरी, झालर लागल गोटेदार, सुरूजदेव अइले अटरिया।
जोड़े कलसुपवा से पूजे तिवइया दुधवा के अरघ दियाय, सुरूजदेव अइले अटरिया।
नइहर सासुर मांगे तिवइया पायल के रूनझुन झंकार,
सुरूजदेव अइले अटरिया।
घोड़वा चढन के बेटा मांगे आंगन परिछन के दामाद,
सुरूजदेव अइले अटरिया।
अपना के मांगेली अवध सिंधोरवा, नइहर में भाई के दुलार।
Tuesday, 12 June 2018
हौसला
बारिश की बूँदें बगीचे के पत्तों पर छत के कोर से टपक कर धरती पर बिखर जा रही थी ।हरे पत्तों पर चमकले पानी की बूँद का छिटकना फूलझड़ी सी शोभायमान हो रही थी। मैं ध्यानमग्न इस दृश्य को देख रही थी ।हवा के संयोग से पत्तों का हिलना उनके खुशियों का सहज संकेत सा लग रहा था।अचानक एक छोटा सा कीट अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद करते हुए उन पत्तों पर चढने का असफल प्रयास करते दिखा।बारिश की रफ्तार भी धीमी हो चुकी थी । रह रहकर अब भी छत से पानी टपक रह था।
कीड़ा धीरे धीरे टहनी पकड़ कर पत्ते पर चढने की कोशिश कर रहा था।जब तक वह वह टहनी पकड़ कर पत्ते के पास पहुचता पानी की एक बूँद ऊपर से टपक जाता और वह पुनः फिसल कर नीचे पहुंच जाता ।अपने बचाव की कोशिश में वह किसी प्रकार टहनी पकड़ कर चिपक जाता। फिर ऊपर आने की कोशिश में लग जाता। कई बार ऐसा करने पर भी असफल होने पर मैंने सोचा अब वह अपना रास्ता बदल लेगा पर फिर उसे मैंने ऊपर आने का प्रयास करते देखा ।मैं समझ गई कि यह जिद्दी प्रवृत्ति का है। मेरी उत्सुकता और बढ रही थी उसकी प्रवृत्ति जानने की कि आखिर कबतक यह प्रयास करेगा।अपने लक्ष्य के प्रति वह कितना समर्पित है? वह मानव तो नहीं, है तो एक कीड़ा।
अतः पास में ही कुर्सी लगाकर बैठ गयी और बड़ी ही तन्मयता से उसकी हरकत को देखती रही। खैर! धीरे धीरे वह फिर गति करता दिखा।पुनः वह अपना प्रयास शुरू कर दिया ।पर अब उसकी गति मंद हो चली थी। अब यह साफ पता चल रहा था कि उसमें हिम्मत अब बिलकुल नहीं थी पर फिर भी कोशिश कर रहा था जिससे स्पष्ट हो रहा था कि उसकी इच्छाशक्ति अब भी बुलंद है।
अंततोगत्वा वह किसी प्रकार पत्ते पर आ पहुँचा । मैंने सोचा कि अब वह फड़फड़ायेगा या उड़ेगा या फिर अपने विजय पर नाचेगा।पर यह क्या? वह तो चित्त हो गया। अब कोई सुगबुगाहट नहीं थी। मैंने समीप जाकर एक लकड़ी से हिलाकर देखा। वह कीड़ा स्थिर हो चुका था। ऐसा लगा कि वह वीरगति को प्राप्त किया होया फिर उसकी हिम्मत नहीं टूटी थी मगर साँसें जरूर रूक गई थी।
जाते जाते वह क्षुद्र कहलाने वाले कीड़े ने हमें एक सुंदर सा सबक सीखा दिया था ।इच्छा शक्ति के आगे बूँद की टपक भी थककर बंद हो गई थी ।
सच,