Saturday, 1 January 2022

गिरि से गिरकर पाषाण खण्ड,फिर कब पर्वत हो पाते हैं।16+16=32 मात्रा

नमन गुरुदेव


16+16=32 मात्रा
गिरि से गिरकर पाषाण खण्ड,फिर कब पर्वत हो पाते हैं।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं ।।
तिनका तिनका चुन घर बनता, भावों से ग्रंथन होता है,
क्षत स्नेह सदा विग्रह कारी, अनुभव से मंथन होता है,
अपनों का मान अगर टूटा, फिर गैर वही हो जाते हैं।।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं।। ।।

हर शब्द मंत्र सा फलित रहे,हर वाक्य घोष जयगान बने।
अंतर में करुणा,दया रहे, चितवन मृदुतम मुस्कान सने।
अज्ञान अगोचर मूढमना, बंजर में फूल उगाते हैं।।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं।। 

टूटे पत्ते अवलंब बिना, हो जीर्ण-शीर्ण रजकण बनते,
नदियां सागर झरने निर्झर, निज रूप बदल जलकण बनते।।
है जरा मरण कटु सत्य सुनो, आते न कभी जो जातें हैं।।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं।। 

प्रश्नों का हल सब मिल जाए, कहना यह मुश्किल है साथी,
संपूर्ण ज्ञान हो मानव को,  बहलाना यह मन है साथी,
सच-झूठ सदा कहता अंतर,भ्रमजाल सदा भरमाते हैं।।


Monday, 20 January 2020

भोर मनसा की

लघुकथा आयोजन 2020
 शीर्षक:- भोर

भोर हो रही थी।सूर्य अपनी लालिमा लिए उदित हो रहा था। मनसा भी अपने गुलाबी गालों पर पानी के छींटे मारकर खिल उठी।अहा! आज बहुत मजा आएगा। स्कूल में मेरी प्रस्तुति सबसे बेस्ट होगी! हूऽऽऽऽ ला लाला ला............ गाती हुई झटपट अपने काम निपटाकर स्कूल चल पड़ी। माँ ने कहा- डब्बे में गुड़ है और रात की एक रोटी भी बची है, खा ले। माँ ऽऽ! तू क्या खायेगी?मनसा जोर से चिल्लायी। मेरी फिकर मत कर! तू जा। तू मेडल लायेगी न तो मेरा पेट बिन खाये ही भर जायेगा।जा जल्दी जा.....।
    मनसा की प्रस्तुति बहुत  अच्छी रही।खूब तालियाँ बजी। पर पुरस्कार किसी और को मिला।मनसा थोड़ी दुःखी हुई पर अपने आप को संभाल लिया। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद सब लौट रहे थे।मनसा भी थके पाँव घर  लौटने लगी।अब उसे भूख भी लगी थी पर उसकी इच्छा ही मर गई थी। उसका मन बार बार उससे झकझोर कर पूछ रहा था- क्या गरीब को मेडल पाने का भी हक नहीं? माँ को क्या कहूँगी? सोचती हुई थके पाँवों को घसीटते हुए  घर की तरफ अन्यमनस्क होकर जा रही थी।अचानक पीछे से आती कार उसके समीप रूकी और एक महिला ने पुकारा- ओ बिटिया!  रूको। मनसा ने पीछे मुड़कर देखा, जजसाहिबा थीं ।तनिक मन मलिन हुआ पर वह रुक गई । उन्होंने कहा-  आओ। मेरी गाड़ी में  बैठो।मैं तुम्हारा घर देखना चाहती हूँ । पहले तो उसने मना किया पर उनके दुबारा कहने पर मनसा कुछ  कह न सकी। 
घर पहुंच कर  जजसाहिबा ने मनसा की माँ से मनसा को अपने नृत्य कला केन्द्र में निःशुल्क शिक्षा देने की बात कह मना ली। मनसा समझ गई कि जजसाहिबा अपनी गलती सुधारने का मौका पाकर खुश थीं ।मनसा भी फिर भोर के सूरज के आने की इंतजार में आखों में ही रात बितायी।भोर फिर  ऊर्जा के साथ  उदित हुआ ।

Wednesday, 1 January 2020

बंजारा

 आज फिर बंजारे ने घर के दरवाजे पर पहुँचकर इकतारा पर धुन बजाना शुरू ही किया था -'हंसा के तोरे संग मे जाई.............।' चुप, चुप, बिल्कुल चुप! मैं  तुम्हारी बातों में  कतई न आनेवाली।आँसू पोछते हुए हंसा न जाने क्यों तिलमिला उठी।मैं आश्चर्य से उसकी ओर देख रही थी क्योंकि वह ऐसी न थी। जब उसकी नजर मुझपर पड़ी तो वह न जाने क्या  ढूँढने लगी।मैंने पूछा-  क्या हुआ?  उसने कहा-  मेरा सामान नहीं मिल रहा। क्या? क्या ?नहीं  मिल रहा ! अरे तू चुप रह ना! खीझते हुए हंसा ने कहा।  बंजारे ने फिर से बजाना शुरू किया- हंसा..........। अब हंसा का दर्द उफान पर था।वह दौड़ती हुई बाहर आई और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाकर कहा- हाँ ! नहीं जाना तेरे साथ । तू बंजारा है दर -दर भटकना तेरा जीवन है। मै नहीं भटक सकती।मैं  बड़े बाप की बेटी हूँ और तू .... तू ठहरा बंजारा।मेरा-तेरा मेल नहीं । इसीलिए तो एक रईस के साथ मेरा ब्याह हुआ।
भाग्यवशात्  वैधव्य और एकाकी जीवन जी रही हूँ ।समझा............? जा न! कहते-कहते फफक कर रो पड़ी।उसे रोता देख बंजारा दुखी हो उठा और फिर इकतारा बजाता निकल गया।

Monday, 30 December 2019

नयासाल

 गर  साल पुराना चला गया तो नया साल भी आएगा
आना जाना तो नियति है  नियन्ता इसे दुहरायेगा।।

हम मानव हैं हमें भले-बुरे का ज्ञान होना चाहिए 
वरना समय कभी रुकता नहीं तो फिर पीछे पछतायेगा।।

जो छूटा नहीं था वह अपना जो पाया है वह मेरा है
अब जो कुछ भी है मिला उसे पाकर आगे बढ जाएगा।।

जो हुआ तुम्हारे भाग्य बदा जो मिला तुम्हारा नसीब था।
जिस तरह गुजरा गुजर गया यह सोच तुम्हें सीखाएगा।।

बदला है साल बदलने दो इसका तो बदलना नियति है 
पर तुम न बदलना मीत मेरे यह जीवन फिर ना पाएगा




Friday, 27 December 2019

तुम और हम

सात फेरे सात वचन
सारी दुनिया तुम और हम
वादा किया बराबर हम
साथ चलेंगे तुम और हम।।

देह का नाता पहले आया
नेह पगा मन महल बनाया।।
खटपट-अनबन बातें बंद 
गायब हो गये श्रृंगार के छंद।।

टूटे वादे सारे वचन
इसके कारक तुम और हम।।

घर का मतलब कहीं खो गया
जीवन अपना जहर हो गया 
पांत का भोजन गायब पाया
एकाकी जीवन  अब आया।।

कहाँ गया वह स्वप्न सलोना
जिसमें थे बस तुम और हम।।

तू और तू बस तेरा वचन
मैं हूँ मुझमें कहता है मन
यही मिजाज कराता अनबन
रिसता घाव बन जाता जीवन।।

 नरक द्वार को खोला जिसने
कर्ता इसके तुम और हम।।



Sunday, 11 November 2018

सातहीं घोड़ा

सातहीं घोड़ा पर सवार सुरूजदेव अइले अटरिया।
हाथ जोड़ी पनिया में ठारी तिवइया सुमिरेली देव के अपार, सुरूजदेव अइले अटरिया।
लाली किरणिया तिवइया के चुनरी, झालर लागल गोटेदार, सुरूजदेव अइले अटरिया।
जोड़े कलसुपवा से पूजे तिवइया दुधवा के अरघ दियाय, सुरूजदेव अइले अटरिया।
नइहर सासुर मांगे तिवइया पायल के रूनझुन झंकार,
सुरूजदेव अइले अटरिया।
घोड़वा चढन के बेटा मांगे आंगन परिछन के दामाद,
सुरूजदेव अइले अटरिया।
अपना के मांगेली अवध सिंधोरवा, नइहर में  भाई के  दुलार।

Tuesday, 12 June 2018

हौसला

बारिश की बूँदें बगीचे के पत्तों पर छत के कोर से टपक कर धरती पर बिखर जा रही थी ।हरे पत्तों पर चमकले पानी की बूँद का छिटकना फूलझड़ी सी शोभायमान हो रही थी। मैं  ध्यानमग्न इस दृश्य को देख रही थी ।हवा के  संयोग से पत्तों का हिलना उनके खुशियों का सहज संकेत सा लग रहा था।अचानक एक छोटा सा कीट अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद करते हुए उन पत्तों पर चढने का असफल प्रयास करते दिखा।बारिश की रफ्तार भी धीमी हो चुकी थी । रह रहकर अब भी  छत से पानी टपक रह था।
कीड़ा धीरे धीरे टहनी पकड़ कर पत्ते पर चढने की कोशिश कर रहा था।जब तक वह वह टहनी पकड़ कर पत्ते के पास पहुचता पानी की एक बूँद ऊपर से टपक जाता और वह पुनः फिसल कर नीचे पहुंच जाता ।अपने बचाव की कोशिश में वह किसी प्रकार टहनी पकड़ कर चिपक जाता। फिर ऊपर आने की कोशिश में लग जाता। कई बार ऐसा  करने पर भी असफल होने पर मैंने सोचा अब वह अपना रास्ता बदल लेगा पर फिर उसे मैंने ऊपर आने का प्रयास करते देखा ।मैं समझ गई कि यह जिद्दी प्रवृत्ति का है। मेरी उत्सुकता और बढ रही थी उसकी प्रवृत्ति जानने की कि आखिर कबतक यह प्रयास करेगा।अपने लक्ष्य के प्रति वह कितना समर्पित है? वह मानव तो नहीं,  है तो एक कीड़ा।
अतः पास में ही कुर्सी लगाकर बैठ गयी और बड़ी ही तन्मयता से उसकी हरकत को देखती रही। खैर! धीरे धीरे वह फिर गति करता दिखा।पुनः वह अपना प्रयास शुरू कर दिया ।पर अब उसकी गति मंद हो चली थी। अब यह साफ पता चल रहा था कि उसमें  हिम्मत अब बिलकुल नहीं थी पर फिर भी कोशिश कर रहा था जिससे स्पष्ट हो रहा था कि उसकी इच्छाशक्ति अब भी बुलंद है।
अंततोगत्वा वह किसी प्रकार पत्ते पर आ पहुँचा । मैंने सोचा कि अब वह फड़फड़ायेगा या उड़ेगा या फिर  अपने विजय पर नाचेगा।पर यह क्या?  वह तो चित्त हो गया। अब कोई सुगबुगाहट नहीं थी। मैंने समीप जाकर एक लकड़ी से हिलाकर देखा। वह कीड़ा स्थिर हो चुका था। ऐसा लगा कि वह वीरगति को प्राप्त किया होया फिर उसकी हिम्मत नहीं टूटी थी मगर साँसें जरूर रूक गई थी।
जाते जाते वह क्षुद्र कहलाने वाले कीड़े ने हमें एक सुंदर सा सबक सीखा दिया था ।इच्छा शक्ति के आगे बूँद की टपक भी थककर बंद हो गई थी ।
सच,