Wednesday, 1 January 2020

बंजारा

 आज फिर बंजारे ने घर के दरवाजे पर पहुँचकर इकतारा पर धुन बजाना शुरू ही किया था -'हंसा के तोरे संग मे जाई.............।' चुप, चुप, बिल्कुल चुप! मैं  तुम्हारी बातों में  कतई न आनेवाली।आँसू पोछते हुए हंसा न जाने क्यों तिलमिला उठी।मैं आश्चर्य से उसकी ओर देख रही थी क्योंकि वह ऐसी न थी। जब उसकी नजर मुझपर पड़ी तो वह न जाने क्या  ढूँढने लगी।मैंने पूछा-  क्या हुआ?  उसने कहा-  मेरा सामान नहीं मिल रहा। क्या? क्या ?नहीं  मिल रहा ! अरे तू चुप रह ना! खीझते हुए हंसा ने कहा।  बंजारे ने फिर से बजाना शुरू किया- हंसा..........। अब हंसा का दर्द उफान पर था।वह दौड़ती हुई बाहर आई और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाकर कहा- हाँ ! नहीं जाना तेरे साथ । तू बंजारा है दर -दर भटकना तेरा जीवन है। मै नहीं भटक सकती।मैं  बड़े बाप की बेटी हूँ और तू .... तू ठहरा बंजारा।मेरा-तेरा मेल नहीं । इसीलिए तो एक रईस के साथ मेरा ब्याह हुआ।
भाग्यवशात्  वैधव्य और एकाकी जीवन जी रही हूँ ।समझा............? जा न! कहते-कहते फफक कर रो पड़ी।उसे रोता देख बंजारा दुखी हो उठा और फिर इकतारा बजाता निकल गया।

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