Monday, 20 January 2020

भोर मनसा की

लघुकथा आयोजन 2020
 शीर्षक:- भोर

भोर हो रही थी।सूर्य अपनी लालिमा लिए उदित हो रहा था। मनसा भी अपने गुलाबी गालों पर पानी के छींटे मारकर खिल उठी।अहा! आज बहुत मजा आएगा। स्कूल में मेरी प्रस्तुति सबसे बेस्ट होगी! हूऽऽऽऽ ला लाला ला............ गाती हुई झटपट अपने काम निपटाकर स्कूल चल पड़ी। माँ ने कहा- डब्बे में गुड़ है और रात की एक रोटी भी बची है, खा ले। माँ ऽऽ! तू क्या खायेगी?मनसा जोर से चिल्लायी। मेरी फिकर मत कर! तू जा। तू मेडल लायेगी न तो मेरा पेट बिन खाये ही भर जायेगा।जा जल्दी जा.....।
    मनसा की प्रस्तुति बहुत  अच्छी रही।खूब तालियाँ बजी। पर पुरस्कार किसी और को मिला।मनसा थोड़ी दुःखी हुई पर अपने आप को संभाल लिया। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद सब लौट रहे थे।मनसा भी थके पाँव घर  लौटने लगी।अब उसे भूख भी लगी थी पर उसकी इच्छा ही मर गई थी। उसका मन बार बार उससे झकझोर कर पूछ रहा था- क्या गरीब को मेडल पाने का भी हक नहीं? माँ को क्या कहूँगी? सोचती हुई थके पाँवों को घसीटते हुए  घर की तरफ अन्यमनस्क होकर जा रही थी।अचानक पीछे से आती कार उसके समीप रूकी और एक महिला ने पुकारा- ओ बिटिया!  रूको। मनसा ने पीछे मुड़कर देखा, जजसाहिबा थीं ।तनिक मन मलिन हुआ पर वह रुक गई । उन्होंने कहा-  आओ। मेरी गाड़ी में  बैठो।मैं तुम्हारा घर देखना चाहती हूँ । पहले तो उसने मना किया पर उनके दुबारा कहने पर मनसा कुछ  कह न सकी। 
घर पहुंच कर  जजसाहिबा ने मनसा की माँ से मनसा को अपने नृत्य कला केन्द्र में निःशुल्क शिक्षा देने की बात कह मना ली। मनसा समझ गई कि जजसाहिबा अपनी गलती सुधारने का मौका पाकर खुश थीं ।मनसा भी फिर भोर के सूरज के आने की इंतजार में आखों में ही रात बितायी।भोर फिर  ऊर्जा के साथ  उदित हुआ ।

Wednesday, 1 January 2020

बंजारा

 आज फिर बंजारे ने घर के दरवाजे पर पहुँचकर इकतारा पर धुन बजाना शुरू ही किया था -'हंसा के तोरे संग मे जाई.............।' चुप, चुप, बिल्कुल चुप! मैं  तुम्हारी बातों में  कतई न आनेवाली।आँसू पोछते हुए हंसा न जाने क्यों तिलमिला उठी।मैं आश्चर्य से उसकी ओर देख रही थी क्योंकि वह ऐसी न थी। जब उसकी नजर मुझपर पड़ी तो वह न जाने क्या  ढूँढने लगी।मैंने पूछा-  क्या हुआ?  उसने कहा-  मेरा सामान नहीं मिल रहा। क्या? क्या ?नहीं  मिल रहा ! अरे तू चुप रह ना! खीझते हुए हंसा ने कहा।  बंजारे ने फिर से बजाना शुरू किया- हंसा..........। अब हंसा का दर्द उफान पर था।वह दौड़ती हुई बाहर आई और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाकर कहा- हाँ ! नहीं जाना तेरे साथ । तू बंजारा है दर -दर भटकना तेरा जीवन है। मै नहीं भटक सकती।मैं  बड़े बाप की बेटी हूँ और तू .... तू ठहरा बंजारा।मेरा-तेरा मेल नहीं । इसीलिए तो एक रईस के साथ मेरा ब्याह हुआ।
भाग्यवशात्  वैधव्य और एकाकी जीवन जी रही हूँ ।समझा............? जा न! कहते-कहते फफक कर रो पड़ी।उसे रोता देख बंजारा दुखी हो उठा और फिर इकतारा बजाता निकल गया।