नमन गुरुदेव
16+16=32 मात्रा
गिरि से गिरकर पाषाण खण्ड,फिर कब पर्वत हो पाते हैं।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं ।।
तिनका तिनका चुन घर बनता, भावों से ग्रंथन होता है,
क्षत स्नेह सदा विग्रह कारी, अनुभव से मंथन होता है,
अपनों का मान अगर टूटा, फिर गैर वही हो जाते हैं।।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं।। ।।
हर शब्द मंत्र सा फलित रहे,हर वाक्य घोष जयगान बने।
अंतर में करुणा,दया रहे, चितवन मृदुतम मुस्कान सने।
अज्ञान अगोचर मूढमना, बंजर में फूल उगाते हैं।।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं।।
टूटे पत्ते अवलंब बिना, हो जीर्ण-शीर्ण रजकण बनते,
नदियां सागर झरने निर्झर, निज रूप बदल जलकण बनते।।
है जरा मरण कटु सत्य सुनो, आते न कभी जो जातें हैं।।
सँभलो,जागो,निजबोध करो,अवितथ स्वरूप खो जाते हैं।।
प्रश्नों का हल सब मिल जाए, कहना यह मुश्किल है साथी,
संपूर्ण ज्ञान हो मानव को, बहलाना यह मन है साथी,
सच-झूठ सदा कहता अंतर,भ्रमजाल सदा भरमाते हैं।।
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